
पिपलिया स्टेशन (निप्र)। संयम के मार्ग पर चलना तलवार की धार पर चलने जैसा होता है। सांसारिक मोह-माया से दूर रहकर, दिनचर्या में जितनी साधना, आराधना और उपासना साधुजन करते हैं, उन्हीं गूढ़ तप क्रियाओं को प्रत्यक्ष अनुभव करना ही उपधान तप कहलाता है। इस अद्वितीय साधना का अनुभव कर पुण्य अर्जन करने हेतु 48 दिनों तक साधु वेश धारण कर उपधान आराधना की जाती है, जो आत्मिक शुद्धि और संयम जीवन की श्रेष्ठतम झलक प्रदान करती है। इसी भाव भूमि पर आधारित उपधान तप आराधना के लिए मालवा अंचल में विराजित साधु-साध्वियों को श्री बही पार्श्वनाथ सम्मेत शिखर तीर्थ पर निश्रा हेतु विनती करने के लिए ट्रस्ट मंडल द्वारा मंगल यात्रा निकाली गई। इस अवसर पर आचार्य निपूर्णरत्नविजय मसा ने कहा कि वर्तमान युग में जैन संतों की त्याग-तपस्या समाज को दिशा देने वाली है। प्रातः 3 बजे से रात्रि 9 बजे तक साधु-संतों द्वारा की जाने वाली धार्मिक क्रियाएं आत्मोत्थान का जीवंत उदाहरण हैं। उपधान तप के माध्यम से आमजन इन क्रियाओं में भाग लेकर संयम की अनुभूति कर सकते हैं। उपधान तप आयोजन समिति अध्यक्ष अशोक कुमठ ने जानकारी दी कि ट्रस्ट मंडल सदस्य, लाभार्थी ज्ञानचंद पूनमचंद चौरड़िया परिवार नीमच के साथ दलौदा, रतलाम, उज्जैन, इंदौर आदि स्थानों पर विराजित साधु-साध्वियों से विनती की गई। इस मौके पर प्रेमप्रकाश पगरिया (नीमच) एवं दिलीप डांगी (मंदसौर) सहित कई श्रद्धालु उपस्थित रहे। यह उपधान तप न केवल आत्मिक अनुशासन की साधना है, बल्कि यह समाज के लिए भी संयम, सेवा और सत्य का प्रेरक उदाहरण बनता है। ऐसे आयोजनों से आध्यात्मिक चेतना को नया आयाम प्राप्त होता है।
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