
– भगवती प्रसाद गेहलोत
लोक कवि संत तुलसीदास जी का जन्म संवत् 1554 की श्रावण शुक्ला सप्तमी को उ प्र के बांदा जिले के राजापुर ग्राम मेंअभुक्त मूल नक्षत्र में हुआ था। पिता श्री आत्माराम दुबे , माता का नाम हुलसी था । अद्भूत बालक देखकर चुनिया दासी को पालन पोषण के लिए दे दिए गए ।
गुरु नर्हर्यानंदजी ने यज्ञोपवीत संस्कार कराया , राम मंत्र की दीक्षा दी अयोध्या में विद्या अध्ययन किया , गुरु ने राम चरित सुनाया । काशी में रहकर पन्द्रह वर्ष तक वेदाध्ययन किया । घर लौटकर माता पिता का श्राद्ध किया । संवत् 1583 में ज्यैष्ठ शुक्ला तेरह को इनका विवाह हुआ । एक बार इनकी पत्नी भाई के साथ अपने मायके चली गई। पीछे पीछे तुलसी दास भी वहां चले गए। यह देख इनकी पत्नी ने इनको बहुत धिक्कारा और कहा , ‘ मेरे इस हाड़ मास के शरीर में जितनी आसक्ति है उससे भी आधी भगवान् में होती तो तुम्हारा बेड़ा पार हो गया होता ।’ यहां से चलकर तुलसीदासजी प्रयाग आए। गृहस्थ का त्याग कर साधू वेश धारण कर तीर्थाटन करने निकल पड़े। काकभुशुण्डिजी के दर्शन , हनुमान जी के दर्शन, बालक रूप में भगवान् श्रीराम के दर्शन हुए। प्रयाग में याज्ञवल्क्य मुनि के दर्शन हुए।काशी में बैठकर पद्य रचनाएं की किन्तु रात्रि में वे लुप्त हो जाती । भगवान शिव व माता पार्वती के कहने पर अयोध्या आए। संवत् 1631 रामनवमी के दिन प्रातः:काल श्री तुलसी दास जी ने राम चरित मानस की रचना प्रारंभ की । दो वर्ष सात महीने छब्बीस दिन में ग्रंथ की समाप्ति हुई। संवत् 1633के मार्ग शीर्ष शुक्ल पक्ष में राम विवाह के दिन सातों कांड पूरे हो गए। रामचरित मानस को भगवान शिव-पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त हुआ । तुलसी दास जी के जीवन में कई विपत्तियां आई । लेकिन भगवान की भक्तिपरक काव्य रचना से उनको कोई डिगा न पाया ।
उनकी निम्न लिखित रचनाएं प्रसिद्ध हैं-
1 – रामचरित मानस –
आप सभी जानते हैं जो जगत् के साहित्य में निराला है ।
2 – राम लला नहछू –
संत तुलसी दास की प्रथम कृति रामलला नहछू मानी जाती है । संवत 1628-२9) नहछू का अर्थ है – नख और क्षुर ( नाखून काटने की नहनी ) अवधी भाषा व 20 सौहर छंदों में लिखी इस काव्य कृति में राम के विवाह से पहले होने वाले एक पारंपरिक संस्कार नहछू पैर के नाखून काटना लोकाचार का वर्णन हुआ है ।
3 – बरवै रामायण –
यह भगवान राम के जीवन पर आधारित प्रसिद्ध रचना है । यह रामायण का एक संक्षिप्त संस्करण है जिसमें 69 बरवै छंद हैं ।यह रामायण के सात कांडों में विभाजित है ।
4 – पार्वती मंगल –
भगवान शिव और पार्वती के विवाह का वर्णन है जिसमें सोहर आदि छंदों का भी प्रयोग किया गया है। इसमें पार्वती की कठोर तपस्या, उनके प्रेम, भगवान शिव द्वारा उनकी परीक्षा , शिव की बारात का वर्णन जिसमें हास्य रस का पुट है , विवाह और बिदाई का वर्णन भी है।
5 – जाननकी मंगल –
यह एक प्रसिद्ध काव्य है , जिसमें भगवान राम और देवी सीता के विवाह का विस्तृत वर्णन है। यह एक खण्ड काव्य है। जो अवधी भाषा में लिखा गया है । इसमें राम चरित मानस के कई छंदो का उपयोग किया गया है और कुछ स्थानों पर रामचरित मानस के शब्द दोहराए गए हैं।
6 – ‘रामाज्ञा प्रश्न
यह रामचरित मानस से कुछ भिन्न है और इसमें शुभ अशुभ विचार के लिए रामकथा के माध्यम से मार्ग दर्शन दिया गया है। इस पुस्तक में 7-7 सप्तकों के सात सर्ग है और प्रत्येक सर्ग में दोहे के माध्यम से रामकथा के प्रसंगों और उनके शुभ अशुभ फलो का वर्णन है।
7 – वैराग्य संदीपनी –
वैराग्य संदीपनी में वैराग्य के महत्व और संत के गुणों का वर्णन है जो पाठकों को सांसारिक मोह माया से दूर रहने और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। इसमें कुल 62 छंद हैं जिनमें दोहे चौपाई और सोरठे शामिल हैं।
8 – गीतावली
इसमें राम कथा के गीतों का संग्रह है। यह ब्रज भाषा में रचित है। इसमें राम के चरित्र के विभिन्न पहलुओं को गीतों के माध्यम से व्यक्त किया गया है। इसे बाल लीला, अयोध्या कांड और विरह प्रसंगों में पिरोया है। इसके 328 पदों में राम के सौंदर्य शक्ति और चरित्र का वर्णन है जो विभिन्न रागों में गाये जा सकते हैं।
9 – कवितावली
ब्रज भाषा में रचित यह एक मुक्तक काव्य है इसमें रामकथा के विभिन्न प्रसंग बालकांड से लेकर उत्तर कांड तक के सम्मिलित हैं। इसमें अवधी, राजस्थानी बुंदेली, अरबी ,फारसी के शब्दों का प्रयोग भी मिलता है।
10- दोहावली –
यह दोहों का एक संग्रह है इसमें 573 दोहे हैं जिनमें से कुछ रामचरित मानस और रामाज्ञा प्रश्न में भी हैं । कुछ दोहे कवि के जीवन की घटनाओं से संबंधित भी हैं ।
यह ग्रंथ भक्ति ज्ञान, वैराग्य सदाचार और नीति का एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। इसका उपयोग जीवन प्रबंधन के सूत्रों को समझने के लिए किया जाता है।
11 – श्रीकृष्ण गीतावली –
ब्रज भाषा का काव्य है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण जी लीलाओं का वर्णन है । विशेष रूप से बाल लीला और गोपियों के साथ रास लीला का।
12 – विनय पत्रिका-
ब्रज भाषा में लिखा यह एक भक्ति काव्य है। और इसमें 279 पद हैं। इसमें भगवान राम के प्रति तुलसीदास की विनय (विनम्रता) व्यक्त की गई है।
भगवती प्रसाद गेहलोत
पिपलिया स्टेशन जिला मंदसौर मध्य प्रदेश 458 664 मोबाइल 798704 8978