
पिपलिया स्टेशन (जेपी तेलकार)। मंगलवार की दोपहर एक कार के पीछे सायरन बजाती दौड़ती पुलिस की गाड़ी ने जैसे ही पिपलिया और मल्हारगढ़ के बीच की सड़कों पर रफ्तार पकड़ी, पूरे इलाके में सनसनी फैल गई। लोग हैरानी में ठहर गए कि आखिर माजरा क्या है। दरअसल यह कोई आम पीछा नहीं था, बल्कि एक फिल्मी स्टाइल में चल रही डोडाचूरा तस्करों की घेराबंदी थी, जिसमें पुलिस ने पूरे 15 किलोमीटर तक जान जोखिम में डालकर तस्करों का पीछा किया और आखिरकार पिपलियामंडी के रेलवे फाटक वाले ओवरब्रिज पर जाम लगाकर कार को रोकते हुए 60 किलो डोडाचूरा जब्त कर लिया। पूरे घटनाक्रम में दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, जबकि दो अन्य मौके से फरार हो गए। इस दौरान कई बार सड़क हादसे होते-होते बचे, कार की तेज रफ्तार और लापरवाह ड्राइविंग के कारण राहगीरों की जान पर बन आई। गनीमत रही कि कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ। आरोपियों को कोर्ट ने तीन दिन पुलिस रिमाण्ड पर सौंपने के आदेश दिए है। जानकारी के अनुसार मल्हारगढ़ पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि बूढ़ा क्षेत्र से मादक पदार्थ डोडाचूरा से भरी एक कार जोधपुर के लिए रवाना हो रही है, जो नारायणगढ़-मल्हारगढ़ मार्ग से होकर जाएगी। इस सूचना पर पुलिस ने नाकाबंदी शुरू की, लेकिन जैसे ही संदिग्ध कार पुलिस की पकड़ में आती, ड्राइवर ने कार को तेजी से मोड़ा और उल्टी दिशा में भाग खड़ा हुआ। यहां से शुरू हुआ फिल्मी स्टाइल का पीछा। कार तेज रफ्तार से निकलती गई, और पीछे पुलिस का वाहन सायरन बजाते हुए पीछे लगा रहा। जिस कार का पीछा हो रहा था उस पर कोई नंबर प्लेट नहीं थी और कांच भी काले रंग के थे। कार ड्राइवर ने पहले वाहन को मनासा रोड की ओर मोड़ा, फिर पिपलियामंडी की तरफ रुख किया। इस दौरान जैन स्थानक के आगे बायपास के पास एक व्यक्ति कार की चपेट में आने से बाल-बाल बचा। कार ड्राइवर ने आगे जाकर वाहन को फोरलेन पर मोड़कर नीमच की दिशा पकड़ी। लेकिन पुलिस ने पहले से पिपलियामंडी में ओवरब्रिज पर जाम लगाकर नाकाबंदी कर दी थी। जैसे ही कार ओवरब्रिज के पास पहुंची, पुलिस ने उसे चारों ओर से घेर लिया और उसमें सवार दो युवकों को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया। कार (डीएल 1 सीएसी 7518) की तलाशी लेने पर 2 कट्टों में भरा कुल 60 किलो डोडाचूरा जब्त किया गया। गिरफ्तार आरोपियों की पहचान निवासी जस्साराम (24) पिता पुखाराम मेघवाल, निवासी काकानी मेघवालों की ढ़ाणी, खाराबेरा पुरोहितान, थाना लूणी, जिला जोधपुर और विक्रम (19) पिता कन्हैयालाल मेघवाल, निवासी डोली कलां, थाना कल्याणपुरा, जिला बालोतरा, के रूप में हुई। पुलिस ने इनके खिलाफ एनडीपीएस एक्ट में मामला दर्ज किया और मंगलवार को दोनों को मंदसौर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें तीन दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया। टीआई राजेन्द्र पंवार के अनुसार, पूछताछ में खुलासा हुआ है कि इन दोनों को डोडाचूरा लेने के लिए अशोक जाट, निवासी भांडू कलां, थाना झावर, जिला जोधपुर ने भेजा था। पुलिस ने अशोक जाट के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया है। अशोक जाट के कहे अनुसार दोनों टकरावद आए थे, वहां एक व्यक्ति ने गांव से बाहर कार में डोडाचूरा लोड़ कराया था। डोडाचूरा सप्लाय करने वाला व्यक्ति अभी अज्ञात है, क्योंकि गिरफ्तार आरोपियों ने उसे केवल देखा था, पहचान नहीं पाते। संभावना है कि अशोक जाट ही सप्लायर को जानता हो, उसकी गिरफ्तारी के बाद ही पूरा नेटवर्क उजागर हो सकेगा। फिलहाल दो आरोपी फरार हैं और उनकी तलाश में पुलिस की टीमें संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही हैं। पुलिस इस नेटवर्क में शामिल अन्य लोगों की जानकारी निकालने में जुटी है।
तस्करों की धरपकड़ के नाम पर पुलिस आमजन की जान से खिलवाड़ कर रही है?
जिला मंदसौर और आसपास के क्षेत्रों में मादक पदार्थों की तस्करी कोई नई बात नहीं है। अफीम, डोडाचूरा और अन्य नशीले पदार्थों का अवैध कारोबार वर्षों से यहां की कानून-व्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करता रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में एक नई और चिंताजनक प्रवृत्ति देखने को मिल रही है—तस्करों की गिरफ्तारी के नाम पर पुलिस द्वारा की जा रही ‘फिल्मी स्टाइल’ की कार्रवाइयों ने आम नागरिकों की सुरक्षा को एक कोने में धकेल दिया है। हाल ही में मल्हारगढ़-पिपलियामंडी मार्ग पर एक कार का 15 किलोमीटर तक पीछा कर ओवरब्रिज पर नाकाबंदी कर पकड़ने की घटना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। सायरन बजाती तेज रफ्तार पुलिस गाड़ी, भागती हुई संदिग्ध कार, जानलेवा ड्राइविंग और बीच सड़क पर सांसें थामे खड़े आम लोग — क्या यह किसी पुलिस एक्शन मूवी का दृश्य था या हकीकत में सड़क पर चलती जनता की सुरक्षा से हो रहा खिलवाड़? इस सवाल का उत्तर तभी तलाशा जा सकता है जब हम यह मान लें कि कानून का पालन कराने वाली संस्था को भी कानून के दायरे में रहकर ही कार्य करना चाहिए। किसी अपराधी को पकड़ने की होड़ में पुलिस यदि आम राहगीरों, दोपहिया चालकों, बुजुर्गों, बच्चों और निहत्थे नागरिकों की जान जोखिम में डाल रही है तो यह स्वयं में एक अपराध से कम नहीं। इस पूरे मामले की गम्भीरता तब और अधिक बढ़ जाती है जब हमें यह ज्ञात होता है कि हाल ही में इसी क्षेत्र की भांगी पिपलिया निवासी, नीमच अस्पताल चौकी में पदस्थ आरक्षक राजेन्द्रसिंह को खुद डोडाचूरा की तस्करी में रंगे हाथों पकड़ा गया है। पुलिस रिमांड और बर्खास्तगी के बाद भले ही विभाग ने उस पर कार्रवाई कर दी हो, लेकिन इससे उस गहरी सड़ांध का आभास होता है जो मादक पदार्थों की इस काली दुनिया और पुलिस व्यवस्था के बीच पनप चुकी है। सूत्रों के अनुसार, मादक पदार्थों की बरामदगी के बाद शुरू होती है सौदेबाजी की एक अलग ही दुनिया। लाखों-करोड़ों का लेन-देन, चार्जशीट कमजोर करना, गवाहों को प्रभावित करना या फिर बड़े सप्लायरों तक न पहुंचकर मामूली पकड़ पर ही कार्रवाई खत्म कर देना—इन सबके आरोप पुलिस पर पहले भी लगते रहे हैं। तो क्या पुलिस की भूमिका अब केवल धरपकड़ और प्रेस नोट जारी करने तक सिमट गई है? या फिर यह केवल एक ‘शो’ बन चुका है जिसमें वास्तविक अपराधी बच निकलते हैं और जोखिम उठाते हैं आम नागरिक? इस समय आवश्यकता है कि प्रशासन स्वयं पुलिस कार्रवाई के तरीकों की समीक्षा करे। क्या पीछा करने का कोई निर्धारित ‘प्रोटोकॉल’ है? क्या रिहायशी इलाकों और सार्वजनिक मार्गों पर ऐसी तेज रफ्तार कार्रवाइयों से पहले जनता की सुरक्षा को ध्यान में रखा जाता है? यदि नहीं, तो क्या यह पुलिस द्वारा कानून के दायरे का अतिक्रमण नहीं? मादक पदार्थों की तस्करी के खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन यह कार्रवाई जनहित की कीमत पर नहीं हो सकती। जब तक पुलिस तंत्र अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही को लेकर सजग नहीं होगा, तब तक यह खतरा सिर्फ तस्करों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि हर उस नागरिक के सिर पर मंडराता रहेगा जो बस एक गलत समय पर सड़क पर मौजूद था। समाज को भी अब यह प्रश्न उठाना चाहिए—कि क्या हमारे रक्षक, हमारे लिए ही सबसे बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं? और यदि हां, तो यह किसके आदेश और किसकी अनुमति से?