
पिपलिया स्टेशन (निप्र)। श्रावण मास के पावन अवसर पर श्रद्धा, भक्ति और सामाजिक सौहार्द का अनुपम संगम सोमवार को पिपलियामंडी क्षेत्र में देखने को मिला, सावन के दूसरे सोमवार पर परंपरानुसार टीलाखेड़ा बालाजी मंदिर से मंदसौर स्थित विश्वप्रसिद्ध भगवान पशुपतिनाथ मंदिर तक भव्य पैदल कावड़ यात्रा का आयोजन किया गया। जयकारों, भजन-कीर्तन और अखाड़ों के हैरतअंगेज करतबों के साथ कावड़ यात्रियों ने नगर सहित ग्रामीण अंचल में आस्था का वातावरण निर्मित कर दिया। सुबह बालाजी मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना के बाद बैंड-बाजों व भजन मंडलियों के साथ यात्रा का विधिवत शुभारंभ हुआ। कावड़ यात्रा संघ के संयोजक रामलाल राठौर ने बताया कि यात्रा में नगर सहित आसपास के गांवों के श्रद्धालु भारी संख्या में शामिल हुए। करीब 100 श्रद्धालुओं ने कावड़ उठाई, जबकि करीब 5 हजार भक्तों ने पैदल चलकर यात्रा में भाग लिया। विशेष बात यह रही कि लगातार चौथे वर्ष नगर के सहकारी दालमिल मार्ग स्थित नर्मदेश्वर महादेव मंदिर से भी कावड़ यात्रा का सहभाग हुआ। मंदिर के राहुल शर्मा ने बताया कि इस बार विशेष रूप से 101 लीटर जल से भरी भव्य कावड़ तैयार की गई, जिसे करीब 300 श्रद्धालुओं ने बारी-बारी से उठाया और मंदसौर स्थित भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर तक ले जाया गया। यात्रा के दौरान नगर में जगह-जगह श्रद्धालुओं का पुष्पवर्षा कर भव्य स्वागत किया गया। मुख्य मार्गों पर स्वल्पाहार, शीतल जल व्यवस्था रही। मंदसौर पहंुचने पर सभी कावडियों का प्रसादी भोज भी सम्पन्न हुआ।
अखाड़ों के कलाकारों ने लगाए करतब:-
यात्रा के साथ चल रहे अखाड़ा कलाकारों ने अपने करतबों से नगरवासियों का मन मोह लिया। तलवारबाजी, लाठी संचालन और शरीर संतुलन जैसे रोमांचक करतबों ने श्रद्धालुओं के बीच उत्साह भर दिया।
पशुपतिनाथ मंदिर में किया जलाभिषेक:-
मंदसौर पहुंचने पर कावड़ यात्रियों ने विश्व प्रसिद्ध भगवान पशुपतिनाथ की अष्टमुखी प्रतिमा के दर्शन कर जलाभिषेक किया और सुख-समृद्धि, उत्तम वर्षा व सामाजिक समरसता की कामना की। धार्मिक वातावरण, भक्ति, उल्लास व सामूहिक सहभागिता की भावना से जनमानस भाव विभोर रहा।
44 वर्षों से अनवरत जारी है परंपरा:-
पिपलियामंडी के टीलाखेड़ा बालाजी मंदिर से मंदसौर तक यह कावड़ यात्रा पिछले 44 वर्षों से निरंतर आयोजित की जा रही है। वर्ष दर वर्ष श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हो रही है, जिससे यह यात्रा अब नगर की एक विशेष धार्मिक पहचान बन चुकी है।
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