
पिपलिया से उज्जैन तक निकली वाहन रैली, बोल बम यात्रा ने किया 37 वें वर्ष में प्रवेश, बारिश में भी नहीं डगमगाया श्रद्धालुओं का हौसला
पिपलिया स्टेशन (निप्र) श्रद्धा, भक्ति और परंपरा की मिसाल बन चुकी बोल बम यात्रा ने इस बार भी पिपलिया से उज्जैन तक भक्तों के उत्साह के साथ निकाली गई। बोल बम साइकिल यात्रा संघ के तत्वावधान में रविवार को वाहन रैली के रूप में निकली इस यात्रा ने 37 वें वर्ष में प्रवेश किया, जो इस क्षेत्र की पुरानी और सजीव धार्मिक परंपराओं में गिनी जाती है। सुबह पिपलिया के टीलाखेड़ा स्थित बालाजी मंदिर पर पूजा-अर्चना के साथ यात्रा का शुभारंभ हुआ। इसके बाद बैंड-बाजों, ढोल-ढमाकों और बोल बम के जयकारों के साथ श्रद्धालुओं का काफिला रवाना हुआ। शुरुआत के दौरान संत मिथिलेश मेहता, विष्णु नारायण महाराज भी मौजूद रहे। नगर में किसान नेता श्यामलाल जोकचन्द्र, नगर परिषद् उपाध्यक्ष भारतसिंह सोनगरा, प्रेस क्लब अध्यक्ष जगदीश पंडित, भाजपा मंडल अध्यक्ष राकेश महाराज, पोरवाल युवा संगठन राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेन्द्र उदिया, पूर्व अध्यक्ष गोविन्द पोरवाल, भगतराम डाबी, मानसिंह चौहान, मनोहर माली, सहित नगरवासियों ने जगह-जगह पुष्पवर्षा कर यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं का स्वागत किया। चारों ओर हर-हर महादेव की गूंज के साथ भगवान का आशीर्वाद मांगते भक्तों की आस्था ने माहौल को पूरी तरह भक्ति मय कर दिया। यात्रा संघ संयोजक किशोर रोचानी ने जानकारी देते हुए बताया कि यह यात्रा पहले 30 वर्ष वष तक साइकिल से निकाली जाती थी, लेकिन बाद में सुविधाओं और यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए इसे वाहन रैली का रूप दिया गया। उन्होंने बताया कि यह यात्रा महज एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना की पहचान बन चुकी है। रविवार को यह यात्रा मंदसौर पहुंची, जहां भगवान पशुपतिनाथ का विधिवत अभिषेक कर क्षेत्र में अच्छी वर्षा व खुशहाली की कामना की गई। इसके बाद यात्रा उज्जैन के लिए रवाना हुई। यात्रा के दौरान रुक-रुक कर बारिश होती रही, लेकिन श्रद्धालुओं के उत्साह और आस्था में कोई कमी नहीं आई। बारिश के बावजूद वाहन रैली लगातार आगे बढ़ती रही और श्रद्धालुओं का जोश देखते ही बनता था। 28 जुलाई को उज्जैन पहुंचेगी, जहां बाबा महाकाल के दर्शन व अभिषेक कर क्षेत्र की सुख-शांति और समृद्धि के लिए विशेष प्रार्थना की जाएगी। बाबा महाकाल से जुड़ने की इस परंपरा में शामिल श्रद्धालु वर्षों से लगातार भाग ले रहे हैं, जो इस यात्रा की लोकप्रियता और आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है। यह यात्रा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि लोगों के विश्वास, सहयोग और समाज के सामूहिक भाव का प्रतीक बन गई है। बरसों पुरानी यह परंपरा हर साल नए उत्साह के साथ न केवल धार्मिक आस्था को बल देती है, बल्कि समाज को एक सूत्र में पिरोने का कार्य भी करती है।
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