पिपलिया स्टेशन (जेपी तेलकार)। राजनीति का रास्ता कभी भी आसान नहीं होता। यह संघर्ष, धैर्य और जनसंपर्क का खेल है, जिसमें लगातार मेहनत और लोगों का विश्वास सबसे बड़ा हथियार होता है। संघर्ष की भट्टी से तपकर निकले, किसान पुत्र महेन्द्रसिंह गुर्जर इस सच का जीता-जागता उदाहरण हैं। छोटे से गांव से निकलकर उन्होंने छात्र राजनीति से लेकर विधानसभा चुनाव तक का सफर तय किया और आज कांग्रेस संगठन में मजबूत स्तंभ बन चुके हैं। हाल ही में कांग्रेस पार्टी ने उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें एक बार फिर जिला कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है। गांधी वादी विचारधार से प्रेरित महेन्द्रसिंह गुर्जर का जन्म किसान परिवार में हुआ। मूलतः छोटे से गांव गुर्जरबर्डिया निवासी गुर्जर का बचपन मल्हारगढ़ तहसील के खेरखेड़ा गांव में बीता। खेती-किसानी के माहौल में पले-बढ़े होने के कारण उन्होंने संघर्ष और मेहनत की अहमियत बचपन से ही समझ ली थी। स्कूल के दिनों से ही वे नेतृत्व करने में आगे रहते थे। छात्र प्रतिनिधि के तौर पर अपनी पहचान बनाई और छात्रहितों की आवाज उठाते हुए उन्होंने नेतृत्व कौशल दिखाया। यही गुण आगे चलकर उनके राजनीतिक जीवन की नींव बने। गुर्जर ने शासकीय महाविद्यालय, मन्दसौर से स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 2003 में एम.ए. (दर्शनशास्त्र) की डिग्री लेने के बाद उनका दृष्टिकोण और व्यापक हुआ। दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी होने के नाते वे समाज, राजनीति और जनता की समस्याओं को गहराई से समझते रहे। गुर्जर की असली राजनीतिक यात्रा छात्र संगठन एनएसयूआई से शुरू हुई। इसी दौरान उन्हें मन्दसौर की पूर्व सांसद और वर्तमान में तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस प्रभारी मीनाक्षी नटराजन का मार्गदर्शन मिला। नटराजन के सानिध्य में उन्होंने संगठनात्मक कार्यप्रणाली सीखी और गांव-गांव जाकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जोड़ने का काम किया। उनकी सक्रियता ने उन्हें संगठन में मजबूत आधार दिलाया और वे युवा कांग्रेस के दौर में भी लगातार आंदोलनों और जनसंघर्षों में सबसे आगे रहे। राजनीति में संघर्ष उनके जीवन का अहम हिस्सा रहा है। वे कई बार आंदोलनों में सक्रिय रहे। मन्दसौर में मुख्यमंत्री को काले झंडे दिखाने की घटना में उन्हें तीन माह की जेल यात्रा भी करनी पड़ी। कठिन परिस्थितियों ने उन्हें झुकने नहीं दिया, बल्कि और मजबूत बना दिया। युवा कांग्रेस के समय में वे उस दौर के प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष और वर्तमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्षरत रहे। किसानों, युवाओं और आमजन की समस्याओं को लेकर उन्होंने कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। कांग्रेस ने महेन्द्रसिंह गुर्जर पर भरोसा जताते हुए दो बार मन्दसौर विधानसभा से प्रत्याशी बनाया। पहली बार वे सिर्फ 1500 वोटों के अंतर से चुनाव हारे। दूसरी बार उन्हें कांग्रेस की ही आंतरिक बगावत का सामना करना पड़ा, जिससे जीत हाथ से निकल गई। हालाँकि हार ने उनका हौसला कम नहीं किया। वे संगठन के साथ मजबूती से खड़े रहे और जनता के बीच अपनी पकड़ और मजबूत करते गए। गुर्जर को कई जिलों में चुनाव प्रभारी बनाया गया, जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक चुनावी जिम्मेदारियां निभाईं। उनकी रणनीतिक समझ और संगठनात्मक पकड़ ने उन्हें कांग्रेस के भरोसेमंद चेहरों में शामिल कर दिया। महेन्द्रसिंह गुर्जर का परिवार पूरी तरह कृषि कार्यों से जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि वे किसानों की समस्याओं को जमीनी स्तर पर समझते हैं। वे सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं और हमेशा जनता के बीच रहते हुए उनकी समस्याओं का समाधान तलाशने में जुटे रहते हैं। आज एक बार फिर से कांग्रेस ने उन पर भरोसा जताया और जिला कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी। कार्यकर्ताओं का मानना है कि उनके नेतृत्व में संगठन और सशक्त होगा तथा आगामी चुनावों में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करेगी। महेन्द्रसिंह गुर्जर का जीवन सफर इस बात का प्रमाण है कि मेहनत, संघर्ष और निष्ठा से राजनीति में भी बड़ी पहचान बनाई जा सकती है। छोटे से गांव से निकलकर छात्र राजनीति, आंदोलन, जेल यात्रा और विधानसभा चुनावों तक का सफर तय करने वाले गुर्जर आज मन्दसौर कांग्रेस की राजनीति में भरोसेमंद चेहरा हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता और संगठनात्मक मजबूती आने वाले चुनावों में कांग्रेस के लिए निर्णायक साबित हो सकती है। वहीं गुर्जर का कहना है “मेरी राजनीति का लक्ष्य केवल पद प्राप्त करना नहीं है, बल्कि जनता की सेवा करना और उनकी आवाज़ बनना है।”
गाँधीवादी विचारधारा से प्रेरित – महेन्द्रसिंह गुर्जर
किसान पुत्र होने के नाते गुर्जर ने हमेशा सादगी को अपनाया। वे मानते हैं कि जनता की सेवा केवल जमीन से जुड़े रहकर ही संभव है। यही सोच उन्हें गाँधीवादी जीवनशैली से जोड़ती है। गाँधी जी कहते थे “नेता वही है जो जनता के बीच रहे। गुर्जर ने हमेशा यही रास्ता चुना। गाँव-गाँव जाकर किसानों, मजदूरों और युवाओं की आवाज बने। संघर्ष और जेल यात्रा के बावजूद उन्होंने कभी हिंसा का रास्ता नहीं अपनाया। विरोध हमेशा जनहित और शांति के साथ किया। यही उनका गाँधीवादी चरित्र है। गुर्जर बार-बार कहते हैं कि उनकी राजनीति का मकसद केवल पद पाना नहीं, बल्कि जनता की सेवा करना है। यह सीधा-सीधा गाँधीवादी राजनीति का आदर्श है। गाँधीवादी सोच, सादगी और संघर्ष ने उन्हें वह पहचान दी है जो आज जिले की कांग्रेस के लिए एक प्रेरणा बन चुकी है। कार्यकर्ता मानते हैं कि उनका नेतृत्व संगठन को नई ऊर्जा देगा।