
पिपलिया स्टेशन (निप्र)। भांडवपूर तीर्थ में इन दिनों चातुर्मासी आराधना का विशेष आध्यात्मिक वातावरण बना हुआ है। देशभर से आए 500 से अधिक आराधक आचार्य जयरत्न सूरि मसा की निश्रा में चातुर्मास कर रहे हैं। सभी आराधक सुबह 5 बजे से रात 8 बजे तक धार्मिक साधना में लीन रहते हैं। यह तीर्थ जैनाचार्य जयंत सूरी मसा के समाधि स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यहां भगवान महावीर की 2300 वर्ष पुरानी प्रतिमा और नवनिर्मित जिनालय की अद्भुत शिल्पकला श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रही है। साधना में शामिल हुए बही पार्श्वनाथ तीर्थ अध्यक्ष अशोक कुमठ ने बताया कि विक्रम संवत 813 में विशाला नगरी में भगवान महावीर की भव्य प्रतिष्ठा हुई थी। विदेशी आक्रमण के समय नगर और जिनालय खंडहर हो गए, लेकिन भगवान की प्रतिमा सुरक्षित रही। बाद में कोमता ग्राम के श्रीसंघ ने प्रतिमा को बैलगाड़ी में विराजित कर ले जाना चाहा। यात्रा के दौरान प्रतिमा जिस स्थान पर रुक गई, वहीं भांडवपूर तीर्थ की स्थापना हुई। यह स्थान भांडुप वन में स्थित है। विक्रम संवत 1223 में यहां प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। तभी से यह तीर्थ श्मारवाड़ का कल्पवृक्षश् कहलाने लगा। 850 वर्षों के बाद तीर्थ का जीर्णाेद्धार कार्य जैनाचार्य राजेंद्र सूरी, यतीन्द्र सूरी, जयंतविजय और शांतिविजय मसा के मार्गदर्शन में हुआ। दो बार हुए जीर्णाेद्धार के बाद वर्ष 2024 में तीर्थ ने नई भव्यता प्राप्त की। अब यहां 70 कमरों की आधुनिक धर्मशाला, भोजनशाला और पर्यावरणीय उद्यान की सुविधाएं उपलब्ध हैं। आचार्य जयरत्न सूरि मसा ने तीर्थ को शिक्षा से जोड़ने का संकल्प लिया है। उनके निर्देशन में राजेन्द्रसूरी जैन महाविद्यालय का कार्य प्रगति पर है। श्रद्धालु यदि नाकोड़ा तीर्थ से बालोतरा होते हुए लौट रहे हैं, तो अमृतसर-जामनगर एक्सप्रेस वे पर चढ़कर भुंडवा गांव के पास से सवा घंटे में भांडवपूर पहुंच सकते हैं। यह चातुर्मासी आयोजन तीर्थ की पवित्रता को बढ़ा रहा है। साथ ही श्रद्धालुओं के लिए अध्यात्म और संस्कारों की प्रेरणा भी बन रहा है।
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