
पिपलिया स्टेशन (निप्र)। दृढ संकल्प और दृढ निश्चय से अगर मंजिल की ओर कदम बढ़े तो सफलता निश्चित मिलती है। प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने हजारों वर्ष पूर्व यह मूल मंत्र जीवन में सफलता प्राप्त करने का दिया। बही पार्श्वनाथ तीर्थ अध्यक्ष अशोक कुमठ ने आदिनाथ जिनालय निकुम में कही। कुमठ ने कहा भगवान आदिनाथ जिन्हें ऋषभदेव भी कहते है, सर्वप्रथम उन्होंने ही जीवन जीने की कला सिखाई। उन्हीं के समय खेती करना प्रारंभ हुआ। उनके पुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम से ही देश का नाम भारत हुआ। भगवान का चैत्र अष्टमी को जन्म व दीक्षा कल्याण हुआ था। इसी दिन से ही वर्षीतप आराधना की शुरुआत हुई थी। भगवान चार सौ दिन तक निराहार रहे। तत्पश्चात कुरुजांगल देश (वर्तमान में उप्र) के हस्तीनापुर नगर पहंुचे। वहां राजा श्रेयांस को पूर्व भव के स्मरण हो जाने से भगवान को सर्वप्रथम इक्षुरस से पारणा कराया। वह दिवस अक्षय तृतीया था, इसलिए आज भी सभी वर्षीतप आराधकों को पारणें अक्षय तृतीया पर होते है। चार सौ दिन तक उपवास करके प्रसन्न भाव से आगे बढ़ना दृढ संकल्प की सर्वश्रेष्ट सीख है। इस अवसर पर वहां विराजित साध्वी चारु दर्शना मसा आदि ठाणा को ओली आराधना के लिए बही पार्श्वनाथ तीर्थ पधारने की विनती की। जिसे उन्होंने स्वीकृति दी। आवरीमाता महोत्सव के बाद मंगल विहार करते हुए वे 2 अप्रेल को पहंुचेंगे।
——