
कोटा/नीमच। मध्य प्रदेश के गांधीसागर और कुनो नेशनल पार्क में अफ्रीका से लाए गए चीतों को अब जल्द ही एंक्लोजर से मुक्त कर जंगलों में छोड़ा जाएगा। इन चीतों के संभावित मूवमेंट को ध्यान में रखते हुए राजस्थान के कोटा और बारां जिलों की सीमाओं पर स्थित भैसरोड़गढ़ व शेरगढ़ सेंचुरी को लेकर वन विभाग ने युद्धस्तर पर तैयारियां शुरू कर दी हैं। चूंकि ये क्षेत्र मध्य प्रदेश की चीता लैंडस्केप से सीधे जुड़े हुए हैं, इसलिए संभावना है कि खुले वातावरण में विचरण करते हुए चीते राजस्थान के इन जंगलों में प्रवेश करेंगे। वन विभाग का फोकस इस बात पर है कि चीतों को प्राकृतिक आहार और अनुकूल वातावरण मिल सके ताकि वे ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ रुख न करें और मानव-वन्यजीव संघर्ष की आशंका न बने। इसके लिए राज्य सरकार ने 5 करोड़ रुपये का बजट जारी किया है, जिससे एक विशेष ‘प्री-बेस सिस्टम’ तैयार किया जाएगा।
क्या है प्री-बेस सिस्टम?
वन विभाग द्वारा विकसित किया जा रहा प्री-बेस सिस्टम, एक पूर्व-प्राकृतिक आधारभूत संरचना है, जिसमें शाकाहारी जीवों की पर्याप्त संख्या और विविधता तैयार की जाएगी। इससे यह सुनिश्चित होगा कि चीतों को सेंचुरी क्षेत्र में ही पर्याप्त मात्रा में शिकार मिल सके। चीतों की आहार श्रृंखला में मुख्य रूप से चिंकारा, चितल, ब्लैक बक जैसे जानवर होते हैं। यही कारण है कि इन्हीं प्रजातियों को बड़ी संख्या में एंक्लोजर में रखकर प्रजनन कराया जाएगा।
तीन बड़े एंक्लोजर की होगी स्थापना
डीएफओ कोटा अनुराग भटनागर ने जानकारी दी कि विभाग द्वारा तीन बड़े एंक्लोजर बनवाए जा रहे हैं, जिनमें एक एंक्लोजर 20 सेक्टर में विभाजित होगा। इस एंक्लोजर में लगभग 40 फीमेल और 10 मेल शाकाहारी जीव छोड़े जाएंगे, ताकि स्वाभाविक रूप से इनका प्रजनन हो और एक वर्ष के भीतर इनकी संख्या 50 से 80 तक पहुंच सके। यह एंक्लोजर लोहे की मजबूत संरचना से तैयार किया जाएगा, ताकि पैंथर, लकड़बग्घा या अन्य शिकारी जानवर अंदर प्रवेश न कर सकें। साथ ही, इसमें जल स्रोत, प्राकृतिक चारा और सुरक्षित वातावरण की पूरी व्यवस्था होगी। इस संरचना का उद्देश्य न केवल चीतों को भोजन उपलब्ध कराना है, बल्कि पारिस्थितिकी संतुलन को भी बनाए रखना है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकेगा यह सिस्टम
डीएफओ भटनागर ने बताया कि प्री-बेस सिस्टम से सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि चीतों को गांवों की ओर जाकर पालतू पशुओं जैसे भेड़-बकरी का शिकार नहीं करना पड़ेगा, जिससे स्थानीय लोगों में डर और आक्रोश की भावना नहीं पनपेगी। इससे मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाएं घटेंगी और चीतों का संरक्षण भी प्रभावी होगा।
पर्यटन को मिलेगा बड़ा प्रोत्साहन
चीतों की मौजूदगी से जहां वन्यजीव संरक्षण को मजबूती मिलेगी, वहीं यह पर्यटन की दृष्टि से भी वरदान साबित होगा। चीता एक ऐसा बड़ा शिकारी है जो दिन के समय सक्रिय रहता है, जबकि टाइगर और लेपर्ड अधिकतर रात्रि में ही दिखाई देते हैं। इससे दिन में पर्यटकों को चीतों की सैर और साइटिंग का बेहतर मौका मिलेगा, जो इकोटूरिज्म को नया आयाम देगा। भैसरोड़गढ़ और शेरगढ़ सेंचुरी में पहले से ही हरियाली, पर्वतीय स्थल और जल स्रोत हैं, जो पर्यटन के लिए उपयुक्त हैं।
इतिहास और पुनर्वापसी की कहानी
भारत में चीते 1952 में पूरी तरह विलुप्त हो गए थे। इसके बाद दशकों तक पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों के बीच यह सवाल बना रहा कि क्या भारत में दोबारा चीतों को बसाया जा सकता है? 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर अफ्रीका से चीते लाकर मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में बसाए गए। यह प्रयोग अब धीरे-धीरे सफल होता दिख रहा है, और चीतों को नए आवास क्षेत्रों में शिफ्ट कर उनकी संख्या और दायरा बढ़ाने की दिशा में काम हो रहा है। राजस्थान सरकार इस राष्ट्रीय परियोजना का हिस्सा बनते हुए न केवल इन चीतों के स्वागत के लिए भौतिक ढांचा तैयार कर रही है, बल्कि इको-सेंसिटिव ज़ोन की पहचान, जैवविविधता पुनर्स्थापना और लोक जागरूकता कार्यक्रमों पर भी ध्यान दे रही है।
संरक्षण, संवर्धन और सामुदायिक सहयोग का संगम
इस योजना के तहत स्थानीय ग्रामीणों और वनग्रामों को भी जोड़ा जाएगा। प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा, वन्यजीवों से तालमेल और चीतों की निगरानी के लिए स्वयंसेवी समूह बनाए जाएंगे। इससे न केवल ग्रामीणों को रोजगार मिलेगा, बल्कि वे संरक्षण के भागीदार भी बनेंगे। वन विभाग का मानना है कि यह परियोजना एक नवीन मॉडल बन सकती है, जिसमें संरक्षण, विकास और पर्यटन को एक साथ आगे बढ़ाया जा सके। आने वाले वर्षों में यदि यह योजना सफल रहती है, तो कोटा और बारां जिले भारत के प्रमुख चीता पर्यटन स्थलों में गिने जाएंगे। इस पूरी प्रक्रिया के माध्यम से भारत वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक नई और प्रेरणादायक मिसाल पेश कर रहा है, जिसकी गूंज आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर भी सुनाई दे सकती है।