
हरदा/भोपाल। हरदा में करणी सेना परिवार के आंदोलन के दौरान राजपूत छात्रावास में पुलिस लाठीचार्ज मामले में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सख्त रुख अपनाते हुए तत्काल प्रभाव से हरदा के एडिशनल एसपी, एसडीएम और एसडीओपी को हटा दिया है। इसके साथ ही कोतवाली थाना प्रभारी व ट्रैफिक थाना प्रभारी को नर्मदापुरम रेंज के आईजी कार्यालय में अटैच किया गया है। मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर ट्वीट कर यह जानकारी दी। उन्होंने लिखा, “हरदा जिले में 13 जुलाई को राजपूत छात्रावास में घटित प्रकरण की जांच के उपरांत अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, एसडीएम एवं एसडीओपी को तत्काल प्रभाव से हरदा जिले से हटाया गया है। थाना प्रभारी, कोतवाली एवं ट्रैफिक थाना प्रभारी को नर्मदापुरम आईजी कार्यालय में अटैच किया गया है। समाज के छात्रावास में अनुचित बल प्रयोग एवं स्थिति को संवेदनशील रूप से निराकरण करने में की गई लापरवाही को लेकर यह कार्रवाई की गई है।” यह निर्णय ऐसे समय आया है जब 28 जुलाई से प्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने जा रहा है। माना जा रहा है कि विपक्ष इस मुद्दे को सदन में जोरशोर से उठाने वाला था। मुख्यमंत्री ने जांच रिपोर्ट मिलने के बाद यह निर्णय लिया है ताकि राजनीतिक व सामाजिक असंतोष को नियंत्रित किया जा सके। 13 जुलाई को हरदा में करणी सेना के नेतृत्व में शांतिपूर्ण आंदोलन किया जा रहा था। इस दौरान पुलिस ने राजपूत छात्रावास में घुसकर लाठीचार्ज किया, जिससे पूरे प्रदेश में आक्रोश फैल गया। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा गया कि लोग लाठीचार्ज से बचने के लिए छतों पर चढ़ गए, कई बालकनी से कूदते दिखाई दिए। पुलिस पर यह भी आरोप लगे कि उन्होंने छात्रों की जाति पूछकर लाठियां बरसाईं।
करणी सेना ने कार्रवाई को बताया ‘अधूरा न्याय’
करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीवनसिंह शेरपुर ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर मुख्यमंत्री की कार्रवाई का स्वागत तो किया, लेकिन उसे “अधूरा और दिखावटी न्याय” बताया। उन्होंने कहा, “जिसके आदेश पर यह अमानवीय लाठीचार्ज हुआ, उन वरिष्ठ अधिकारियों—जैसे कलेक्टर और एसपी—पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। केवल स्थानांतरण से पीड़ितों को न्याय नहीं मिलेगा।” उन्होंने दोषियों पर सीधी निलंबन कार्रवाई और न्यायिक जांच की मांग की है, साथ ही यह भी चेतावनी दी कि यदि शीघ्र ठोस निर्णय नहीं हुआ, तो आंदोलन को चरणबद्ध रूप से आगे बढ़ाया जाएगा। जब तक दोषियों पर कठोर कार्रवाई नहीं होती और न्यायिक जांच शुरू नहीं की जाती, तब तक वे लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन जारी रखेंगे। यह मामला केवल प्रशासनिक लापरवाही का नहीं, बल्कि सामाजिक असंतुलन और पुलिस के व्यवहार पर बड़ा सवाल है। मुख्यमंत्री की प्रारंभिक कार्रवाई सराहनीय है, परंतु असली न्याय तभी संभव होगा जब शीर्ष स्तर के जिम्मेदार अफसरों की भूमिका की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों को सख्त सजा दी जाए।