
पिपलिया स्टेशन (निप्र)। जो तारे वो तीर्थ है, तीर्थ की स्पर्शना मात्र से सकारात्मक उर्जा का संचार हो और नकारात्मक उर्जा का परित्याग हो। एसा ही मालवा का शंत्रुजय परासली तीर्थ है। उक्त बात बही तीर्थ अध्यक्ष अशोक कुमठ (पिपलियामंडी) ने परासली तीर्थ पर ग्रामवासियों को संबोधित करते हुए कही। कुमठ ने कहा कि परासली ग्राम में एक भी जैन समाज का घर नही है। लेकिन मंदिर प्रतिष्ठा में ग्रामवासियों के समर्पण, भक्ति ने इस रिक्तता को महसूस नही होने दिया। प्रतिष्ठा के समय गुुरु आचार्य हेमचंद सागर सूरीश्वरजी मसा के प्रवेशोत्सव में ग्रामजनों ने उत्साह से घर-घर ले जाकर गुरु को अक्षत, श्रीफल की गहुलियां बनाकर वंदन कर जो मन के भाव व्यक्त किए वे अनुकरणीय है। परासली गांव के वरिष्ठ भंवरसिंह चन्द्रावत परिवार के महेन्द्रसिंह चन्द्रावत ने अपना निजी बंगला (रामायण) मसा के निवास के लिए खाली कर दिया। यह गुरु के प्रति समर्पण की अद्भूत मिसाल थी। अजैनियों द्वारा 54 आयंबिल तप की तपस्या ने भी एक इतिहास रच दिया। प्रतिदिन प्याज, लहसुन, मसालेदार भोजन करने वालों ने नौ दिन तक बिना, तेल, घी, मिर्च, मसाले का भोजन कर यह तप किया। कुमठ ने तीर्थ के बारे में बताते हुए कहा यहां 1400 वर्ष प्राचीन श्वेतवर्णी भगवान आदिनाथ की प्रतिमा है। गांव में जैन घर नही होने से इसे अन्यत्र ले जाने की कौशिश हुई, लेकिन सफलता नही मिली। सफेद संगमरमर से निर्मित यह अद्भूत मंदिर करीब 18 करोड़ की लागत से निर्मित हुआ। मकराना के संगमरमर पर उड़ीसा के कारीगरों ने भव्य नक्काशी से एसा सजाया मानो हम आबू के देलवाड़ा जैन मंदिर में खड़े है। आप सभी के सहयोग ने यह सिद्ध कर दिया कि सेवा, संकल्प और समर्पण के सहारे हर लक्ष्य संभव है। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु ग्राम परासली के विकास में निश्चय ही एक उत्प्रेरक का कार्य करेंगे।
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