
पिपलिया स्टेशन (निप्र)। तीर्थ स्थान हमारी श्रद्धा का केन्द्र होते है, इनकी स्पर्शना से गजब की सकारात्मक उर्जा मिलती है। जो संसारी क्रोध, मोह, माया के दलदल से तारने का कार्य करते है। साध्वी श्रुतपूर्णा मसा के संयम जीवन के 27 वें वर्ष प्रवेश पर आयोजित शक्रस्तव पूजा विधान में अष्टापद तीर्थ प्रणेता साध्वी प्रज्ञाश्री ने कही। मसा ने आगमों में दो तरह के तीर्थ बताए। पहला जंगम तीर्थ, जिसमें माता-पिता और गुरु का स्थान है। दूसरा स्थावर तीर्थ, जिसमें हमारे जीन मंदिर आते है। भारत वर्ष के 108 तीर्थों में उल्लेखित बही पार्श्वनाथ तीर्थ की महिला अपरम्पार है। शेर के सिंहासन पर विराजित यह चमत्कारी पूरे भारतवर्ष में इकलोती है। तीर्थ मैनेजर प्रभुलाल छाजेड़ ने बताया प्रातः 9 बजे मंदिर में विधान प्रारंभ हुआ। जिसमें लाभार्थी परिवार नीतू अशोक कुमठ ने प्रभावी मंत्रों के साथ भगवान का शक्रस्तव अभिषेक किया। पश्चात अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, फल, पूजा का विधान हुआ। आरती, मंगल दीप के बाद मसा के मांगलिक से कार्यक्रम का समापन हुआ।
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